0 साल में एक बार जरुर आला अधिकारियों का छापा गिरता है एआरटीओ के विभाग में लेकिन दलालों का कुछ नहीं बिगड़ता I
(अनिल शर्मा)
उरई (जालौन)। उरई का एआरटीओ विभाग इस मामले में बहुत चर्चित है कि विभागीय अधिकारियों की मिली भगत से विभिन्न पटल में दलाल ही काम करते हैं। जो पिछले कई वर्षों से लगातार यह काम करते चले आ रहे हैं। वो बाहरी तो है ही आरटीओ विभाग की सरकारी नौकरी में भी नही है लेकिन पूरी शान से बाबुओं की कुर्सी में ऐसे बैठते है, ऐसे काम करते है जैसे वे ही असली बाबू हैं। इनका काम जो भी ड्राईविंग लाईसेंस फिटनेस तथा गाड़ी पास कराने के जितने भी तरह के काम होते हैं, अधिकारियो के निर्देश पर इन्होंने रेट वांध रखे हैं। और जिसका भी काम होता है उसे यह पूजा भेट चढ़ानी ही पड़ती है वरना वो एआरटीओ के चक्कर ही काटता रह जाता है।
जैसे एक उदाहरण, परमानेन्ट लाईट वाहनों का यदि आपको ड्राविंग लाईसेंस चाहिए तो उसकी सरकारी फीस एक हजार रुपए है। लेकिन विभाग में विभिन्न पटल में बैठे यह दलाल वावू के रुप में आपसे तीन हजार रुपए की मांग करेंगे। यदि आपने उन्हे दे दिया तो विना किसी परेशानी के आरटीओ ऑफिस के वाहर बैठे दलालों के ऑफिस से मिल जाएगा। या फिर वे कथित वावू दलाल आपके घर भी वो लाइसेंस पहुंचा देंगे। जैसे ही आप एआरटीओ ऑफिस में प्रवेश करेंगे एक पटल पर वावू के रुप में बैठा हुआ दलाल धीरज रायकवार जो आरआई के लिए वसूली का काम करता है वह आपसे पूछेगा और आप जव उसे काम वताएंगे तो वह आपको फीस वता देगा।
इसी तरह अवधेश का एक दूसरा दलाल जो ग्याराह नं कमरे में बैठता है उसका भी यही काम है। जो आने वाले व्यक्तियों से काम पूछकर के संबंधित अधिकारी से मिलकर काम वंता है। तीसरा दलाल है जो वावू के रुप में बैठता है उसका नाम जनमेजय है जिसे जेके के नाम से जानते हैं। इसके अलावा पप्पू संजय वर्मा नाम का दलाल है जो एआरटीओ से लेकर पुरानी नई विर्लडंग में हर पटल में जाकर पैसे लेकर काम कराता है। इसके अलावा अरुण नाम का एक दलाल और है जो एआरटीओ सुरेस कुमार का सवसे चहेता दलाल माना जाता है जो काम कहीं न वन रहा हो उसे कराने का मददा रखता है चाहे ड्राईविंग स्कूलय्परपीशन दिलाना हो गाडी की फिटनेस कराना हो, ड्राईवर की आंख का परीक्षण कराना हो ड्राइविंग लाईसेंस दिलाना हो यह सारे काम यह पांच वावू नुमा दलाल ही करवाते है। इनकी ही वहां तूती वोलती है। पिछले दिनो डीएम व एसपी ने यहां छापा मारा था। तो विलाईया नाम का एक दलाल उन्होंने रगें हाथों पकड़ा था। चर्चा यह है कि लगभग वीस हजार रुपए खर्च कर के विलईया महाराज आज भी आरटीओ विभाग में धड़ल्ले से दलाली कर रहे हैं। गौर तलब है कि पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से सरकारी वावुओ की जगह यह गैर सरकारी दलाल ही वावुओ के विभिन्न पटलो का काम देख रहे है। आरटीओ आत और जाते रहते है। लेकिन इस दलाली की परम्परा पर कभी प्रभावी रोक नही लगी। अधिकारी और आरआई के स्थानांतण के वाद चेहरे तो वदलते है लेकिन गैर सरकारी यह दलाल सरकारी वाबुओ की जगह ठसके से काम करते हुए मिल जाएंगे। गजव वात यह है कि इसे सभी अधिकारी जानते है और जो काम कराने वाले लोग भी जानते है कि इनके विना हमारा काम नही हो पाएगा। एआरटीओ विभाग एक काई से भरे हुए उस तालाव की तरह है जिसमें कभी कभार कोई आलाधिकारी छापा डालता है जो काई से भरे हुए तालाव में एक पत्थर की तरह होती है। काई भरे तालाव की पत्थर फेकने से थोड़ी देर करे वहां साफ पानी दिखता है लेकिन काई उसे फिर ढक लेती है।
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