X दोनों ही विधाओं में महारत के बाद भी नहीं रखी धन दौलत और यश की चाहत
X अंतिम सांस तक लिखते रहे जीवन सौंदर्य से भरे गीत
उरई (जालौन)! सबका अपना अपना जीवन दर्शन होता है और उसी में उसकी जिंदगी ढल जाती है हर कोई धन - दौलत ,शोहरत और यश के साथ-साथ नाम को कमाना चाहता है बिरला ही होगा कोई जो बहुत कुछ अपने पास रखते हुए भी जिंदगी की सीधी सरल राहों पर चलना ही अपने जीवन की सार्थकता समझता हो जी हां यहां हम एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी शख्स की बात कर रहे हैं जिन्होंने संपूर्ण जीवन पत्रकारिता और साहित्य को समर्पित कर दिया ना तो इन्हें धन दौलत और शोहरत ही आकर्षित कर सकी और ना ही यश कीर्ति,जनपद की बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे विनोद गौतम इसकी जीती जागती मिसाल हैं जिनकी कलम ने कभी समाज की बहुरंगी तस्वीर प्रस्तुत की तो कभी साहित्य के दर्पण में लोगों को अपने गीतों से वास्तविक मुखौटा दिखलाया और जीवन की आखिरी सांस तक आत्म सौंदर्य के गीतों को बिखेरते रहे।
25 नवंबर 1949 को झांसी नगर निवासी श्री श्याम चरण शर्मा के घर में जन्मे विनोद गौतम के पिता संगीत में दिलचस्पी रखते थे जिसका प्रभाव बचपन में ही उनके ऊपर भी पड़ा और वह स्कूल में दाखिले के साथ ही मंच पर गीत और कविताओं को पढ़ा करते थे बाद में यह उनका अपना स्वभाव बन गया।बतलाया जाता है कि स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनके अंदर साहित्य के प्रति लगाव बढ़ गया 15- 16 वर्ष की अवस्था में ही वह कविताएं लिखकर अपने ही करीबी लोगों को सुनाते थे बाद में उन्हें ऐसे अवसर भी मिले जब उनके गीत और कविताओं को बड़े मंचों पर पसंद किया गया तत्पश्चात वह साहित्य के क्षेत्र में अपने को स्थापित करने का मन बनाने लगे थे इसी बीच उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कार्य करने का अवसर मिला तो दोनों ही काम वह एक साथ करते रहे हालांकि उन्होंने दोनों ही कार्य क्षेत्र में कुछ ही वर्षों के दौरान अपने हुनर और योग्यता से जो पहचान कायम की इस बात का अंदाजा इसी से लगाए जा सकता है कि अपने मूल जनपद को छोड़कर जब वह जनपद जालौन में अपनी कर्म भूमि बना चुके थे तो यहां हर कोई उनकी कविताओं और गीतों का मुरीद बन गया यही नहीं पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम सेअपनी बहुआयामी सामाजिक सोच और नजरिए को दिखलाकर यह भी साबित किया कि कलमकार समाज का वास्तविक दर्पण भी होता है उसकी जिम्मेदारियां भी समाज के प्रति उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि साहित्यकार की यही उनके अंदर का सर्वाधिक मजबूत पक्ष है कि वह 74 वर्ष की उम्र में बीमारियों से जूझते हुए भी अपने काव्य प्रेम और पत्रकारिता के दायित्व को नहीं भुला सके । स्वयं विनोद गौतम कहते थे कि जीवन का सही मर्म जीवन को जीने के बाद ही समझ में आता है जीवन का सही आनंद सरलता और सहजता के साथ जीना है।
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23 मार्च 2024 को दुनिया से किया था अलविदा
उरई- आज ही के दिन 23 मार्च 2024 को कलम के धनी और सुकोमल भावनाओं के चितेरे विनोद गौतम ने इस दुनिया से अलविदा कर लिया पर उनके पत्रकारिता के उसूल और अनुभव तथा साहित्य की उपलब्धियां को भूल पाना आसान नहीं है यहां जनपद में अपने जीवन का एक लंबा समय बिताने के बाद जिस तरह से उन्होंने लेखनी के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई वह आज भी लोगों के लिए प्रेरक बनी हुई है पत्रकारिता जगत में उनके चर्चित गीत - "अलख सवेरे जगाता कौआ "पत्रकार के बहुआयामी रूप को दर्शाते हुए कालजई गीत के रूप में आज भी लोगों के बीच गुनगुनाया जाता है।
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